बंगाली समाज को 50 साल से नहीं मिली एक ट्रेन

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हावड़ा ट्रेन के लिए तरस रहें 4 लाख बंगाली लोग
प्रस्ताव लटका कर काँग्रेस-भाजपा ने किया सिर्फ इस्तेमाल

चंद्रपुर: (हरी वार्ता न्यूज)

चंद्रपुर-बल्लारपुर से हावड़ा के लिए सीधी ट्रेन का संघर्ष 50 साल से खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है. कागजनगर, गड़चिरोली और चंद्रपुर जिलों में रहनेवाले करीब 4 लाख बंगाली समाज के लोग 50 साल से ज्यादा समय से इसके लिए मांग कर रहें है. नई ट्रेन ना सही, चलती ट्रेन को आगे बढ़ा कर समस्या का समाधान करने का आग्रह किया जा रहा है. लेकिन कांग्रेस के समय तो हुआ नही पर भाजपा ने बंगाली समाज को सतत आश्वसन देकर उनके वोटो का केवल इस्तेमाल करने का काम किया है, ऐसा अब बंगाली समाज के लोग मानने लगे है.
क्यों जरुरी है सीधी हावड़ा ट्रेन?

यहां रहनेवाले लोगों को कोलकाता जानें के लिए पहले साढ़े 3 घंटे का सफर कर के नागपुर जाना पड़ता है. फिर वहा से ट्रेन पकड़ना पड़ता है. दूसरा मार्ग गोंदिया का है. वहा पहुंचने करीब साढ़े 4 घंटे लगते है. फिर ट्रेन मिल पाती है. दोनों जगहों में जाकर रात के समय प्रतीक्षा करते हुए नींद गंवाना पड़ता है. इसमें बच्चे और बुजुर्ग लोगों को बहुत परेशानी होती है.
परिजन भेट, व्यापार और तीर्थ यात्रा में बाधा
यहां के तीनों जिलों के सैकड़ों लोगों के रिश्तेदार कोलकाता मे है. दक्षिणेश्वर काली मन्दिर, रामकृष्ण मठ, काली घाट और अन्य प्रसिद्ध स्थलों के तीर्थ दर्शन हेतु कई लोग जाते रहते है. कई लोग व्यापार के उद्देश्य से जाते- आते रहते है. मतुया धर्म बांधव हर साल हजारों की संख्या में ठाकुरनगर जाते है. ऐसे में यहां से सीधी हावड़ा ट्रेन उनके साथ ही रेल्वे प्रशासन के लिए भी लाभकारी हो सकती है.
बात रेल मंत्री तक पहुंची तो थी!
ऐसा नहीं है कि बंगाली भाषी लोगो ने कोशिश नहीं की! हर माध्यम से वे नेताओं तक पहुंचे. बात रेल मंत्री तक भी पहुंची थी. लेकिन बंगाली समाज की पुकार किसी ने सुनी नही. हर कोई झूठा आश्वासन देकर समाज के वोटों का इस्तेमाल करता रहा. नतीजा अब तक कोई भी कारवाई नहीं हुई. बल्लारपुर से नागपुर होते हुए या दक्षिण से आंध्र प्रदेश होते हुए हावड़ा के लिए ट्रेन का विस्तार किया जा सकता है, ऐसा जन विकास सेना के बंगाली कैंप विभाग अध्यक्ष हरी दास बिस्वास बताते है. बीबीएमएफ के मुकेश वालके ने बताया कि पूर्व गृह राज्यमंत्री अहीर को बहुत आग्रह किया गया. सीधे ईमेल भी भेजे गए. पर जैसा चाहिए वैसा नियोजित आन्दोलन छेड़ा नहीं गया. कुछ लोगों ने बैनर पकड़वा कर, ज्ञापन देकर फ़ोटो निकालने का काम किया. समाज एक होकर हावड़ा ट्रेन के लिए आक्रामक नहीं हुआ. इस लिए नेताओं ने अपने चापलूसों को कोरा आश्वासन देकर चुप कराया. अब थोड़ी सी चेतना आ रही है. काम तरीके से हुआ तो इस बार उम्मीद है.
क्या वाकई मोदी है तो मुमकिन है?
“मोदी है तो मुमकिन है” ऐसा नारा दिया गया. दूसरी बार सत्ता मिली. हिंदू बंगाली समाज की वैसे तो महाराष्ट्र में कई समस्याएं है. लेकिन अब हावड़ा के लिए सीधी ट्रेन ही पहली मांग है. जन विकास सेना के हरीदास बिस्वास, बीबीएमएफ के मुकेश वालके, देवाशीष बैरागी, मुलचेरा के विष्णु रॉय, किशोर सरकार, बिनॉय बैरागी, विष्णु बिस्वास, सुशांत मुखर्जी, कृष्ण मंडल, मनोरंजन रॉय, प्रणब चक्रवर्ती, अशोक मंडल, प्रकाश बिस्वास, अभिजीत शाहा, संजीत बिस्वास, प्रकाश बिस्वास, अप्पू पॉल, संजय दास, अमित बिस्वास, बाबूराम सेन, ऐसे कई लोग बड़ी उम्मीदें लेकर जन जागृति में जुट गए है.
अगर ट्रेन चहिए तो 3 महीने करें ये काम
फरवरी महीने में बजेट आ रहा है. डायरेक्ट हावड़ा ट्रेन की मांग पूरी करवाने के लिए समय बहुत कम (सिर्फ 3 महीने) है. ऐसे में हमें समय नष्ट नहीं करना चाहिए. बल्कि ज्यादा से ज्यादा फेसबुक, इंस्टा, ट्विटर (X), यूट्यूब, ऐसे सोशल मीडिया पर रेलवे मिनिस्टर, प्राईम मिनिस्टर, रेलवे मुख्यालय को टैग करते हुए रिल, लाईव, पोस्ट कर के अपनी मांग नेता, रेल मंत्री, केंद्र सरकार तक पहुचानी चाहिए. ताकि फरवरी 2025 के बजेट में ट्रेन का प्रस्ताव पारित हो.

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