जहां हरि मिले वही हरिद्वार होता है

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वृंदावन धाम के योगेंद्र कृष्ण शास्त्री का कथन
बंगाली कॅम्प श्रीमद् भागवत कथा
चंद्रपुर, दि.
भावनाओं का अर्थात सच्चा भाव और भक्ति का कोई द्वार नहीं होता. जहां हरि मिले वही हरिद्वार होता है. श्रीमद् भागवत कथा के सातवें पुष्प में मंगलवार को सुदामा चरित्र की कथा श्रद्धालुओं को भाव विभोर कर गई.
श्री धाम वृंदावन के प्रख्यात कथा प्रवक्ता पूज्य श्री योगेंद्र कृष्ण शास्त्री महाराज ने श्रीकृष्णा का स्वधाम गमन, सुखदेव विदाई और परीक्षित मोक्ष की उप कथाओं को विविध दृष्टांत के साथ बहुत ही रसपूर्ण पद्धति से प्रस्तुत किया.
तत्पूर्व बालचरित्र, गोवर्धनपूजा, छप्पनभोग और श्रीकृष्ण मथुरागमन एवं कंस वध, कृष्ण-रुक्मिनी विवाह, महारास के साथ कथा में भक्ति और लीलाओं का इंद्रधनुषी रंग पसर गया था. हजारों की संख्या में उपस्थित कथा श्रवणकर्ताओं की कृष्ण लगन लग गई थीं.
मंगलवार को कथा का अंतिम पुष्प था. इसकी सारी उप कथाएं और दृष्टांत भावविभोर थे. सुदामा के लिए भगवान का व्याकुल और विनम्र हृदय आस्था में छुपी भावनाओं का भक्तिसागर है. यह मनुष्य को दया भाव ही नहीं वरन् उड़ान के बीच धरातल से जुड़े रहने की ओर भी इशारा करती है. भगवान स्वयं भाव के भूखे है. उन्हें किसी भी तरह का भेदभाव मंजूर नहीं. भागवत के मौलिक सार चित्र को आज महाराज श्री ने अपनी सुमधुर वाणी से गतिमान तथा सजीव कर दिया. कथा के अंत में सभी की आंखे नम थीं. कथा की सफलता के लिए सोनम बहु उद्देशीय संस्था के अध्यक्ष निताई घोष, कार्याध्यक्ष बिस्वजीत शाहा, रमेश सरकार, कमलेश दास, अमोल हालदार, मदन शाहा, तारक दत्ता, मनोरंजन रॉय, पीयूष मंडल, जनविजय राजवंशी, निहार हालदार, आर.जी. शाहा, सुखेंदु चक्रवर्ती, मंदिर कमेटी के अध्यक्ष प्राणनाथ राजवंशी, सचिव सन्तोष चक्रवर्ती आदि ने प्रयास किए.

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