चंद्रपुर में किसी भी पार्टी का नहीं है ध्यान
चंद्रपुर:
चंद्रपुर- गड़चिरोली जिले की राजनीति मे महिलाओं का स्थान चिंतनीय है. राजनीति की मुख्य धारा में महिलाओं को लाने का साहस बड़ी बड़ी पार्टियां नहीं कर पा रही है. ये राजनीतिक पेंच या विवशता है या फिर पुरुष प्रधान मानसिकता? इसका जवाब देने भी कोई तैयार नहीं है.
चंद्रपुर में 6 विधनसभा क्षेत्र है. अभी इसके लिए दर्जनों पुरुष इच्छुक होकर जुटे है. सभी दल कद्दावर या लोकप्रिय पुरुष उम्मीदवार की तलाश में है. लेकिन किसी की भी नज़र महिलाओं को सम्मान देने की ओर नहीं है. महिला आरक्षण है तो 6 में से 3 विधानसभा में महिलाओं को टिकट देने का साहस क्यों नहीं जुटाया जा रहा है?
चंद्रपुर में वर्तमान में प्रतिभाताई धानोरकर सांसद है. राजनीति की दलदल में बहुत लड़ झगड़ कर उन्होने टिकट लाया और जनता ने उन्हें दिल्ली पहुंचा दिया. इसके पहले उनके पति भूतपूर्व सांसद बालू धानोरकर ने उन्हे विधायक बना दिया था. महिलाओं को यह सम्मान भी लम्बे समय बाद मिला.
प्रतिभा ताई के पहले स्वर्गीय यशोधरा बजाज राज्यमंत्री बनी थी. उन्हे भी कांग्रेस ने ही प्रतिनिधित्व दिया था. उनके पहले ताई साहेब कन्नमवार जी को यह गौरव प्राप्त हुआ था. वह भी कांग्रेसी थी.
महिलाओं को मौके, लेकिन कितने?
चंद्रपुर में पहली महीला नगराध्यक्ष और पहली महापौर बनाने का काम भी कांग्रेस ने ही किया. उधर अपनी निजी प्रतिष्ठा के लिए जिला परिषद में प्रथम अध्यक्ष के रुप में महीला को मुखिया बनाया गया. उसमे भी कांग्रेस की अहम भूमिका थी.
ये कुछ उदाहरण मात्र है. जिसका कुल प्रतिशत निकाला जाए तो समझदार लोग अंदाजा लगा सकते है.
गड़चिरोली में सन्नाटा
गड़चिरोली का तो हाल ही बुरा है. बद से बदतर है. एक इंदुताई का अपवाद है. जो आज तक अपवाद बना हुआ है. यहां जिला परिषद में भाग्यश्री ताई का कुछ साल पहले का प्रतिनिधित्व छोड़ दिया जाए तो बाकी सब अंधेरा ही अंधेरा है.
महिला आरक्षण का लाभ किसे?
महिलाओं को राजनीति में आरक्षण है. इसके बाबजूद ये हाल क्यों है? चंद्रपुर और गड़चिरोली तो एक बानगी है. पूरे विदर्भ और राज्य तथा देश में महिलाओं की उपेक्षा ही है. सवाल यह भी कि इस आरक्षण का मूल लाभ किसे या किस वर्ग की महिलाओं को हो रहा है?