श्री वृंदावन धाम के योगेंद्र कृष्ण शास्त्री का कथन
बंगाली कैंप भागवत कथा का पंचम पुष्प
चंद्रपुर, दि.
प्रकृति और संस्कृति के प्रति कृतज्ञता का भाव होना आवश्यक है. इसके अभाव में ही मनुष्य सृष्टि को आपदाओं का सामना करना पड़ता है. आज समस्त संसार इस पीड़ा का अनुभव कर रहा है. संस्कृति और प्रकृति परस्पर पूरक है. यह कथन श्री वृंदावन धाम के प्रख्यात कथा प्रवक्ता पूज्य श्री योगेंद्र कृष्ण शास्त्री जी ने रविवार को किया. सोनम बहुउद्देशीय संस्था की ओर से बंगाली कैंप में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा में पंचम दिन का पुष्प पिरोते हुए वे बोल रहे थे.
कथा विस्तार में उन्होंने कई उदाहरण और पूरक उप कथाएं बताई. विविध दृष्टांत देकर उन्होंने बाल चरित्र, गोवर्धन पूजन और छप्पन भोग का महत्व समझाया.
गोवर्धन पूजा का मतलब है, भगवान श्रीकृष्ण ने इंद्र देव के प्रकोप से ब्रजवासियों और जानवरों की रक्षा के लिए गोवर्धन पर्वत उठाया था. यह पूजा, प्रकृति और संस्कृति के प्रति कृतज्ञता का भाव दर्शाती है.
गोवर्धन पूजा से गौधन और पर्यावरण के महत्व को समझने और उसकी रक्षा करने का संदेश मिलता है. गोवर्धन पूजा को अन्नकूट पूजन के नाम से भी जाना जाता है. बाल चरित्र में भगवान श्रीकृष्ण की बाल लिलाओं का उल्लेख है. यह लीला समय समय पर भक्त और समाज को कुछ संदेश देने रची गई.
भगवान श्रीकृष्ण को 56 भोग लगाने की परंपरा, गोवर्धन पर्वत से ही जुड़ी हुई है. इस भोग को लगाने से भगवान कृष्ण प्रसन्न होते हैं और सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं.
कथा सफलतार्थ आयोजक संस्था के अध्यक्ष निताई घोष, कार्याध्यक्ष बिस्वजीत शाहा, अमोल हालदार, रमेश सरकार, कमलेश दास, मदन शाहा, मंदिर कमेटी के सन्तोष चक्रवर्ती, आर. जी. शाहा, सुखेंदु चक्रवर्ती, मनोरंजन रॉय, पीयूष मंडल, जनविजय राजवंशी, निहार हालदार, नरेश तालेरा, नंदू वर्मा आदि समेत सभी प्रयासरत है.